यह जिहाद नहीं है....!
यह जिहाद नहीं है ...
कहता है जो बार - बार ... बस !
कुछ मिनट और इन्तेजार करो
गुजरात के बदले के लिए .../ अल्लाह के लिए ...
मौत का खौफ्फ़ और दहशत महसूस करेंगे / यहाँ लोग
रोक सकते हो तो रोक लो /इस हमले को
नहीं तो कबूल करो कलमे को ...
भला ये शब्द किसको अच्छे लगेंगे
जो यह सुनेंगे ?
जबकि मेरी नजर में तो
बस्ती के आसपास एक नहीं कई घर
गैर मुस्लिमों के बसते हैं
बरसों बरस से /वो साथ रहते हैं
हम ईद,दशहरा और होली साथ-साथ मनाते हैं
फिर यह कौन ?हम् सब के
दिलों के दरीचे में आ कर छिपा बैठा है
हम जिसे नहीं जानते / वो हम से रूठा है .
सदियों के रिश्तों को कर रहा रक्तरंजित
एक साजिश के तहत सब कुछ करना चाहता है
नई शक्ल में परिभाषित
एक -दुसरे के दिलों में पनपने लगी हैं
आशंकाओं की बेलें
जाने- अनजाने मन में ख्याल सा गुजरता है
खून की होली हम भी क्यूं नहीं खेलें ?
जबकि
हम सब ने न जाने कितनी बार /
कितनी बार पढ़ा है धरम ग्रन्थों में
इंसानियत का पाठ
कोई मजहब नहीं देता /किसी को कत्लेआम का अधिकार
फिर कौन बहाने पर उतारू हो रहा
एक -एक इन्सान का खून ?
यह कैसा जूनून ?
ये कैसी शहादत ? क़ि
मासूम बच्चों तक के गले में पहनाई जा रही हैं
कारतूस क़ि मालाएं
जिन क़ि उम्र इतनी के उन को गोद में
खेलायें / हम खोल रहे उन के दिलो दिमाग में
नफरत क़ि पाठशालाएं
सच तो यह है क़ि कुरानी आयत हों या कोई नबी /प्य्गम्बर
किसी ने नहीं दिया बन्दों को कभी यह हुक्म
मैं पूछता हूँ क्या वाकई तुम जानते हो
जिहाद के मायने ?
नही तुम हकीकत से हो अभी तक अनजाने
वरना तुम आपनो से ही दोयम दर्जे का ब्यवहार क्यूं
हो करते हो ?
तुम्हारी तो दुआ होनी चाहिय क़ि एय ... खुदा
तू हम सबको विश्वशांति का जरिया बना
हमारी कानों ने कुरान क़ि हर आयात को है सुना
हम को नहीं करना पूरा
सब के इस्लामीकरण का कोई सपना
यह मेरा नहीं ...तुम जिस मजहबी किताब को लगा कर
सीने से खाते हो रोज कसमें
उसका है यह कहना
किसी के दिल मे बसने के लिय जरुरी है
उसकी बातें सुनी जाएँ
नजरंदाज किये जाएँ
अतीत के खंडहर
शरू हो रिश्तों का एक नया सफ़र
हम करें दस्तखत
खुले आसमान के नीचे
चांदनी से पुररोशन हों / जब मोहब्बत के बागीचे
ऐसा हो हमारे
ख्वाबों का एक शहर
जहाँ प्रेम और चाहत क़ि कंदीलों से
झिलमिल सितारों सा दिखे हर एक घर ....!