Friday, February 18, 2011

चांदनी   रातों में ...!

आओ साथ चलें 
शबनमी चांदनी रातों में 
चाहत की कंदीलें जलें 
कसमें लें 
हवा में लहराय आँचल तेरा
जज्बातों का लगे 
परचम चेहरा तेरा 
मेरा दिल नहीं कोई बुतकदा 
जालिमों को कबूल कर लें 
अपना खुदा 
तहरीरी चौक हो या मर जाने का होसला 
जख्मों पर  चलता जब खंजर 
दिल में मचलता
खवाबों का एक समंदर 
हम तो बाज़ी जीत ही गए 
अब तुम सोचो!
क्या- क्या बचा तुम्हारे अंदर 
हम तो चले  चाँद की नगरिया 
करने प्रेम की बतिया 
प्रेम के सबूत नहीं होते 
केवल खतूत 
डर कर बीच राह में 
साथ छोर मत जाना
आओ साथ चलें 
दो पल संग जी लें....!

 
 

1 comment:

  1. मेरा दिल नहीं कोई बुतकदा
    जालिमों को कबूल कर लें
    अपना खुदा
    तहरीरी चौक हो या मर जाने का होसला
    जख्मों पर चलता जब खंजर
    दिल में मचलता
    खवाबों का एक समंदर
    हम तो बाज़ी जीत ही गए
    अब तुम सोचो!

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