Saturday, February 12, 2011

अपनी कही  हर एक बात...

खामोशियों कि ओढ़  ली है
चादर मैने
तमाम तमन्नाएँ दफ़न कर दी मैने
जब से रिश्तों से किनारा किया
तुम ने
कितने बेदिल /बेरहम होते 
मर्द जात
कितनी जल्दी भुला देते हो /
अपनी कही हर एक बात
एक मैं /
अब भी दहलीज पे
रखना नहीं भूलती
एक रोशन चिराग /आखिर मै ठहरी औरत जात
काश!
तुम समझ सकते मेरे जज्बात ......!

मै  पल- पल...!
मै तनहा कहाँ हूँ /तुम्हारे यादों कि महकती
सदायें साथ जो होती हैं
और उस कमरे मै
एक  जिस्म ही तो होता है बिस्तर पे
मैं तो होती हूँ सपनो के शहर मैं पल -पल तुम्हारे साथ
फिर भी खुली रखती हूँ
तमाम खिर्कियाँ मैं / ताकि एक चाँद से पहले
देख सकूँ /महबूब का चेहरा / जिससे जहाँ की हर शय से
रिश्ता लगे गहरा
सुच कहती हूँ
तुम से/ यकीं करो या न करो ...

मेरा दिल कहता है ...!
हवाओं के जोर से
शाखें क्या झुकीं
लगा पलकों के दरम्यान
बिज्ल्याँ  चमकीं
ये पल दो पल
किसी करामात से कम तो नहीं
तुम चाहे जितनी दूर रहो
मेरा दिल कहता है की तू है
यहीं कहीं
मेरे हमनशीं...!

 

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